मध्यप्रदेश.. में हिंदी अखबार ने बड़ा क़दम उठाया। उसने पहली बार अपने बड़े और राजधानी संस्करण में महिला रिपोर्टर को संपादक नियुक्त किया। हिंदी पत्रकारिता में भी यह इसलिए अहम फैसला है क्योंकि महिलाओं को संपादक बनाने के मामले में अखबार इस तरह की पहल करने से कतराते रहे हैं।
भोपाल में उपमिता वाजपेयी को दैनिक भास्कर का स्थानीय संपादक बनाया गया है। वे हिंदी के इस बड़े समाचार पत्र समूह में किसी बड़े संस्करण की पहली महिला संपादक हैं। इसके पहले जोधपुर की संगीता शर्मा को वर्ष 2010 में पाली का स्थानीय संपादक बनाया गयाउन्होंने 2008 में दैनिक भास्कर में प्रशिक्षु पत्रकार के तौर पर इंदौर में प्रवेश लिया था। इसके बाद उन्होंने फीचर डेस्क व सिटी भास्कर में काम किया। जिसके बाद जम्मू संस्करण में भेजी गईं। विभिन्न ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए वे राष्ट्रीय विशेष (घूमंतु) संवाददाता बनीं। इस दौरान उन्हें खासतौर से काश्मीर व सरहदी इलाक़ों की रिपोर्टिग के लिए जाना गया। रिपोर्टिंग के सिलसिले में उन्होंने उत्तर-पूर्व के दो-तीन राज्यों को छोड़कर लगभग पूरे भारत को नाप लिया है। काश्मीर तो वे साल में तीन-तीन बार तक हो आती थीं।
हिंदी और मोटे तौर पर क्षेत्रीय मुद्रित माध्यम की पत्रकारिता में महिला पत्रकारों की संख्या अंगुलियों पर गिनी जाती है। महिला दिवस पर जब अखबार महिलाओं पर विशेष परिशिष्ट प्रकाशित करते हैं, तब यह सवाल अक्सर पूछा जाता रहा है कि महिलाओं को दैनिक अखबार का संपादक क्यों नहीं बनाया जाता? महिला प्रकाशनों और पत्रिकाओं में यह प्रश्न कभी नहीं आया क्योंकि उनका दायित्व महिलाएँ संभालती रही हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भी यह सवाल ज्यादा नहीं उठता। हिंदुस्तान टाइम्स समूह ने अपने हिंदी अखबार में मृणाल पांडेय को शीर्ष दायित्व सौंपा था। क्षेत्रीय व हिंदी प्रिंट पत्रकारिता में कई अखबारों के जीवनकाल में कोई महिला शीर्ष पद पर नहीं आई। इसलिए यह फैसला उल्लेखनीय है।
उपमिता से ‘इंडिया डेटलाइन’ ने पूछा कि ऐसा क्यों होता रहा है? वे कहती हैं-’मुझे नहीं लगता कि प्रबंधकों ने किसी को रोका। महिलाओं का मेंटल ब्लॉकेज ही उनके क़दम रोकता रहा। ज्यादातर लड़कियाँ फीचर, सिटी भास्कर जैसे काम चुन लेती हैं। अखबार की मुख्यधारा में नहीं आतीं। दूसरी तरफ टेलीविजन पर देखिए तो लड़कों से ज्यादा लड़कियाँ दिखती हैं। यह पूछने पर कि मुख्यधारा में क्या उनके लायक वातावरण या काम करने की सुविधा नहीं है? उपमिता बताती हैं कि उन्हें कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ। महिला होने की वजह से कोई भेदभाव किया गया हो या महिला होने के कारण कोई काम उनके लायक नहीं हो, ऐसा कभी अनुभव नहीं हुआ। मैंने महिला होकर वो काम किए जो पुरुष ही कर रहे होते थे।
अब क्या चुनौती? उपमिता कहती हैं- परफ़ार्म करना ताकि कोई यह न कह सके कि एक महिला संपादक असफल हुई। मेरी प्राथमिकता अखबार में एग्रेशन लाना है। रिपोर्टिंग को मजबूत करना है। मेरी समूची पृष्ठभूमि रिपोर्टिंग की है। मेरा फोकस इसी पर होगा। इसे क्लास अपार्ट बनाना है। खबरों को सरकारी दायरे से कैसे बाहर ले जाकर जनपक्षीय बनाएँ, यह मुझे तय करना है।’ उपमिता की यह सोच इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि दैनिक भास्कर को आमतौर पर ‘डेस्क का अखबार’ माना जाता है।
उपमिता विवाहित हैं। उनका एक चार साल का बेटा है। पति प्रसून मिश्रा दैनिक भास्कर की डिजीटल इकाई के प्रमुख हैं। ऐसे में अक्सर यात्राओं पर रहने से किस तरह की समस्या आती रही? यात्राओं में कोई चुनौती? वाजपेयी कहती हैं-सब मैनेज करना पड़ता है। यात्रा में चुनौती तो आठ साल पहले चुशूल (लद्दाख की वह जगह जो हाल में चीनी अतिक्रमण के लिए चर्चा में आई।) की आबोहवा को लेकर पेश आई थी लेकिन इन सब चीज़ों से ज्यादा बड़ी चुनौती रिपोर्टिंग को लेकर होती है। दिल्ली में खबर की एक पात्र लक्ष्मी अग्रवाल की पंद्रह दिन तक वहाँ रुककर तलाश करनी पड़ी थी। लक्ष्मी अग्रवाल पर एसिड अटैक किया गया था। उन पर बाद में मेघना गुलज़ार ने ‘छपाक’ फिल्म बनाई। दिल्ली में कोई उसे नहीं जानता था। गली-गली छानी। ऑटो वालों तक से उसके बारे में पूछते थे। लेकिन कामयाबी मिली।
समूह के नेशनल एडिटर नवनीत गुर्जर इसे पत्रकारिता में एक अग्रगामी क़दम बताते हुए कहते हैं कि संगीता को पहली बार मैंने ही जिम्मेदारी दी थी जिसे उन्होंने बख़ूबी निभाया। उपमिता भी विभिन्न अवसरों पर अपनी क़ाबिलियत साबित कर चुकी हैं। उपमिता को नियुक्त करते हुए दैनिक भास्कर के प्रबंध संचालक सुधीर अग्रवाल ने विश्वास व्यक्त किया है कि वे कंटेट के लिहाज़ से नई मिसाल कायम करेंगी।
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